साक्ष्य शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द evidence का हिंदी रूपान्तरण है | साक्ष्य शब्द लेटिन भाषा के शब्द evidere से बना है जिसका अर्थ होता है स्पष्ट रूप से पता लगाना या साबित करना | भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार किसी मामले में कोनसे तथ्य साबित किये जा सकते है और कोनसे तथ्य साबित नहीं किये जा सकते है इस बार में स्पष्ट उल्लेख किया गया है तथा किसी तथ्य को कितने प्रकार के साक्ष्य (types of evidence) के माध्यम से साबित किया जा सकता है | इस बार में भी प्रावधान किया गया है | इस लेख के माध्यम से हम यही जानने का प्रयास करेंगे की किसी मामले में किसी तथ्य को कितने प्रकार के साक्ष्य (types of evidence) से साबित किया जा सकता है |

साक्ष्य के प्रकार(types of evidence)

निम्नलिखित प्रकार के साक्ष्यों (types of evidence) की सहायता से किसी तथ्य को किसी मामले में साबित या नासाबित किया जा सकता है –

(1) प्रत्यक्ष साक्ष्य (direct evidence)- प्रत्यक्ष साक्ष्य से अभिप्राय विवाद्यक तथ्यों या तथ्यों के अस्तित्व या अनस्तित्व के बारे में साक्षी के द्वारा न्यायालय के समक्ष दिया गया मौखिक साक्ष्य है | किसी साक्षी द्वारा मामले से सम्बन्धित प्रमुख तथ्यों के विषय में दिया गया बयान प्रत्यक्ष साक्ष्य होता है | वह व्यक्ति जिसने घटना को अपनी आँखो से देखा है उसके द्वारा न्यायालय में दिया गया बयान प्रत्यक्ष साक्ष्य कहलाता है | भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 60 के अनुसार प्रत्येक मौखिक साक्ष्य प्रत्यक्ष होना चाहिए |
जैसे  – ‘क’ के विरुद्ध ख की हत्या का आरोप लगाया गया | ग, वहां पर था उसने देखा था की ‘क’ चाकू से ‘ख’ की गर्दन काट रहा था | ‘ग’ का साक्ष्य प्रत्यक्ष साक्ष्य होगा |

(2) परीस्थितजन्य साक्ष्य( CIRCUMSTANTIAL EVIDENCE)- ऐसा साक्ष्य जो विवाद्यक तथ्य को प्रत्यक्ष रूप से साबित नहीं करता है परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से परीस्थितियों द्वारा यह प्रकट करते है की विवाद्यक तथ्य सही है तो ऐसे साक्ष्य को परीस्थितिजन्य साक्ष्य कहते है |
जब किसी तथ्य को साबित करने के लिए प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध नहीं होता है तो ऐसी अवस्था में कुछ परीस्थितयों का सहारा लिया जाता जाता है | ये परीस्थितियां घटना के इर्द-गिर्द घूमने वाले तथ्य या सबूत होते है जिनका अवलोकन करने से यह पता चलता है की कोई घटना वास्तव में घटी है या नहीं | इसी को परीस्थितियजन्य साक्ष्य कहते है |
जैसे – ‘क’ पर ‘ख’ की हत्या का आरोप है | ऐसा कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं जिससे इस बात का पता चल सके की ‘क’ ने ‘ख’ की हत्या की है लेकिन कुछ ऐसी परीस्थितियां सामने आ जाती है की जिसने यही साबित होता है की ‘क’ ने ही ‘ख’ की हत्या की होगी |
जैसे -‘क’ की ‘ख’ से बहुत दिनों से दुश्मनी चल रही थी ,
‘क’ ने एक बार ‘ख’ को जान से मारने की धमकी भरा पत्र लिखा था,
की घटना के कुछ ही समय बाद ‘क’ को जंगल से भाग कर आते हुए देखा गया,
की उस समय ‘क’ के कपडे खून से सने हुए थे,
की इसके कुछ समय बाद यही समाचार फेला की ‘ख’ की किसी व्यक्ति द्वारा हत्या कर दी गयी और ‘क’ घटना के बाद से ही फरार था |

(3) प्राथमिक साक्ष्य(primary evidence)- प्राथमिक साक्ष्य से अभिप्राय मूल दस्तावेज से होता है जो न्यायालय के समक्ष पेश किया जाता है | प्राथमिक साक्ष्य को सर्वोत्तम साक्ष्य माना जाता है | न्यायालय द्वारा प्राथमिक साक्ष्य पर अन्य साक्ष्य की अपेक्षा अधिक विश्वास किया जाता है |
भारतीय साक्ष्य विधि के अनुसार जिस साक्षी ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किये गए तथ्यों, मूल दस्तवेजों या मूल बातों का स्वयं की ज्ञानेन्द्रियो द्वारा बोध किया हो, उसके द्वारा दी गयी साक्ष्य को प्राथमिक साक्ष्य कहा जाएगा | जैसे अपराधी को अपराध करते हुए देखने वाले व्यक्ति द्वारा दिया गया साक्ष्य प्राथमिक साक्ष्य कहा जाएगा |
इसी प्रकार किसी दस्तावेज की अंतर्वस्तु को साबित करने के लिए जब उस मूल दस्तावेज को ही न्यायालय के समक्ष पेश किया जाता है तो वह दस्तावेज प्राथमिक साक्ष्य कहलाता है |
जैसे- ‘अ’ एक विक्रय विलेख ‘ब’ के पक्ष में 2000 रूपये प्रतिफल के एवज में निष्पादित करता है | ‘ब’ इस विक्रय विलेख के आधार पर कब्जे के लिए वाद दायर करता है | ‘अ’ इस बात से इंकार करता है की उसने कोई विक्रय विलेख लिखा है, ‘ब’ वह विक्रय विलेख न्यायालय के समक्ष पेश करता है, यह दस्तावेज प्राथमिक साक्ष्य है |

(4) द्वितीयक साक्ष्य(secondary evidence)- किसी मूल दस्तावेज की नक़ल या प्रतिलिपि को द्वितीयक साक्ष्य कहा जाता है किसी मूल दस्तावेज के खो जाने पर अथवा नष्ट हो जाने पर अथवा उसके बहुत दूर स्थान पर होने के कारण, जिससे की उसका न्यायालय के परीक्षा हेतु उसका पेश करना असंभव हो तब ऐसी परीस्थिति में न्यायालय उस दस्तावेज की प्रतिलिपि को द्वितीयक साक्ष्य के रूप में स्वीकार कर सकता है | द्वितीयक साक्ष्य को प्राथमिक साक्ष्य की अपेक्षा निम्न कोटि का साक्ष्य माना जाता है | भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 में उन अवस्थाओं का उल्लेख किया गया है जिसके अंतर्गत द्वितीयक साक्ष्य को दिया जा सकता है |

(5) वास्तविक साक्ष्य(real evidence)- वास्तविक साक्ष्य वह साक्ष्य होता है, जो न्यायालय के सामने इस रीती से पेश किया जाता है की न्यायाधीश स्वयं उसे देख कर सही बात का अनुमान लगा सके | वास्तविक साक्ष्य को वस्तु साक्ष्य भी कहते है, क्योकि यह भौतिक वस्तुओं द्वारा प्रस्तुत होता है और न्यायालय के निरीक्षण के लिए पेश किया जाता है |
जैसे- ‘अ’ पर ‘ब’ की चाकू से हत्या करने का आरोप है, वह खून लगा चाकू जो न्यायालय के समक्ष न्यायालय के निरीक्षण के लिए पेश किया जाता है, वस्तु साक्ष्य अथार्त वास्तविक साक्ष्य कहलाएगा |

(6) अनुश्रुत साक्ष्य(hearsay evidence)- अनुश्रुत साक्ष्य ऐसे व्यक्ति का साक्ष्य होता है जिसने किसी घटना को न तो स्वयं देखा है और न ही स्वयं ने सुना है और न ही स्वयं ने अपनी ज्ञानेन्द्रियो से बोध किया हो | अर्थात   यह कहा जा सकता है की ऐसा व्यक्ति जो किसी घटना को स्वयं न तो देखता है और न ही उसे स्वयं सुनता है और जो किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा देखी गयी, सुनी गयी, अथवा बोध की गयी घटना का साक्ष्य न्यायालय में देता है | अनुश्रुत साक्ष्य कहलाता है |
जैसे – ‘क’ पर ‘ख’ के घर में चोरी करने का आरोप है | ‘ग’ न्यायालय के समक्ष उपस्थित होकर यह साक्ष्य देता है की उसने ‘घ’ को यह कहते सुना है की ‘क’ ने ‘ख’ के घर चोरी की है, यह अनुश्रुत साक्ष्य है |

(7) मौखिक साक्ष्य(oral evidence)- मौखिक साक्ष्य वह साक्ष्य होता है जो किसी व्यक्ति द्वारा स्वयं न्यायालय के समक्ष उपस्थित होकर दिया जाता है | मौखिक साक्ष्य हमेशा प्रत्यक्ष होना  चाहिए |

(8) दस्तावेजी साक्ष्य(documentary evidence)- जब कोई दस्तावेज न्यायालय के समक्ष पेश किया जाता है तो उसे दस्तावेजी साक्ष्य कहा जाता है | मौखिक साक्ष्य की अपेक्षा दस्तावेजी साक्ष्य का अधिक महत्व होता है क्योकि वह अधिक निश्चित और विश्वसनीय होता है |

(9) न्यायिक साक्ष्य(judicial evidence)-न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाने वाला प्रत्येक साक्ष्य, चाहे वह मौखिक हो या दस्तावेजी ‘न्यायिक साक्ष्य’ कहलाता है। न्यायिक साक्ष्य सदैव न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया साक्ष्य होता है और वह न्यायालय अभिलेख पर रहता है|

(10) न्यायेतर साक्ष्य(Extrajudicial evidence)- न्यायेतर साक्ष्य वह साक्ष्य होता है जो की किसी व्यक्ति द्वारा न्यायालय के बाहर किसी अन्य व्यक्ति या प्राधिकारी को दिया जाता है |

उपर्युक्त साक्ष्यों के प्रकारों( types of evidence ) द्वारा किसी मामले में किसी तथ्य को साबित या नासाबित किया जा सकता है |

 

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