भारतीय दंड संहिता की धारा 19 में न्यायाधीश(judge) शब्द को परिभाषित किया गया है | इस धारा के अनुसार न्यायाधीश(judge) वह व्यक्ति होता है जो किसी विधिक कार्यवाही में, चाहे वह सिविल हो या दाण्डिक,ऐसा निर्णय देने के लिए सशक्त होता है | जिसके विरुद्ध अपील न होने पर वह निर्णय अंतिम हो जाये या ऐसा निर्णय, जो अन्य प्राधिकारी द्वारा पुष्ट किये जाने पर अंतिम हो जाये, देने के लिए, विधि द्वारा सशक्त होता है या जो उस व्यक्ति निकाय में से एक हो, जो व्यक्ति निकाय ऐसा निर्णय देने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो |

साधारण भाषा में समझने की कोशिश करे तो न्यायाधीश(judge) वह व्यक्ति होता है (1) जो या तो शासकीय रूप से न्यायाधीश के पद पर आसीन हो, या (2) जो किसी सिविल या दाण्डिक कार्यवाही में अंतिम निर्णय या ऐसा निर्णय जिसके विरुद्ध अपील न होने पर वह अंतिम हो जाये या ऐसा निर्णय जिसकी किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा पुष्टि किये जाने पर वह अंतिम हो जाये, देने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो, अथवा (3) जो उस व्यक्ति निकाय में से एक हो जिस व्यक्ति निकाय को विधि ने ऐसा निर्णय देने के लिए सशक्त किया हो |

उपरोक्त प्रथम कोठी में उच्च न्यायालय का न्यायाधीश, जिला न्यायाधीश, सहायक न्यायाधीश और अधीनस्थ न्यायाधीश आते है और द्वितीय कोठी में यह आवश्यक है की कोई विधि कार्यवाही हो तथा उस व्यक्ति को उस कार्यवाही में विधि के अंतर्गत अंतिम निर्णय देने की शक्ति हो, इसलिए जो कोई भी व्यक्ति इन शर्तो को पूर्ण करे वह व्यक्ति न्यायाधीश(judge) कहलायेगा | एक मजिस्ट्रेट न्यायाधीश केवल तभी है जब वह विधि कार्यवाही की अधिकारिता के अंतर्गत कार्य कर रहा हो | उच्च न्यायालय किसी मजिस्ट्रेट के समक्ष शपथ लिए हुए शपथ पत्र के प्रयोग की अनुमति नहीं दे सकता | एक संघ बोर्ड का सभापति न्यायाधीश (judge)नहीं होता है क्योकि उसे विधि कार्यवाही में विधि द्वारा अंतिम निर्णय देने के लिए सशक्त नहीं किया गया है |
एक मध्यस्थ किसी वाद में स्वयं द्वारा निर्देश के लिए अंतिम निर्णय देने के लिए विधि द्वारा सशक्त किये जाने के कारण एक न्यायाधीश(judge) होता है |
एक ऐसा मजिस्ट्रेट जिसे किसी आरोप के सम्बन्ध में जिसके लिए उसे केवल उच्च न्यायालय को सुपुर्द करने की शक्ति प्राप्त है, ऐसी अधिकारिता का प्रयोग करने वाला मजिस्ट्रेट न्यायाधीश(judge) नहीं होगा |

न्यायाधीश(judge) कौन है –

भारतीय दंड संहिता की धारा 19 के अनुसार न्यायाधीश(judge) एक ऐसा व्यक्ति होता है जो किसी विधिक कार्यवाही में चाहे वह सिविल हो या दाण्डिक, ऐसा निर्णय जिसके विरुद्ध अपील न होने पर वह कार्यवाही अंतिम हो जाये देने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो या फिर ऐसा व्यक्ति जो ऐसे व्यक्ति निकाय का सदस्य हो,जो निर्णय देने के लिए विधि द्वारा सशक्त किये गए हो |

जज(judge) और मजिस्ट्रेट(magistrate) में अंतर –

सामान्य तोर पर दो तरह के मामले होते है | एक होता है सिविल मामला और एक होता है दाण्डिक मामला | सिविल मामले को हिंदी में व्यवहार मामले कहते है | अंग्रेजी में सिविल सूट वही उर्दू में दीवानी मामले कहते है | आपराधिक मामलो को हिंदी में कहते है दाण्डिक मामले और उर्दू में कहते है फौजदारी मामले | तो सिविल प्रकृति के मामले क्या होते है या सिविल मामले क्या होते है इसकी जानकारी मिलती है,सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 9 में मिलती है | तो सिविल मामले कौनसे है ऐसे मामले जिसमे अधिकार, अनुतोष या क्षतिपूर्ति की मांग की गयी है | दाण्डिक मामले कोनसे होते है ऐसे मामले जिसमे अपराध के लिए प्रावधान है और दंड के लिए मांग की गयी है | तो यह कहा जा सकता है की दो तरह के मामले होते है सिविल मामले और दाण्डिक मामले |यदि आपके द्वारा किसी अधिकार या अनुतोष की मांग की जाती है तो ऐसे मामले की सुनवाई सिविल जज या व्यवहार न्यायाधीश द्वारा की जायगी और यदि आपके द्वारा न्यायालय से दंड की मांग की जाती है तो जो कोई ऐसे मामले को सुनेगा उसे दंडाधिकारी कहा जायगा | कुछ मामले विशिष्ट रूप से सिविल प्रकृति के होते है | जैसे की कॉपी राइट के मामले, पेटेंन के मामले, ट्रेडमार्क के मामले यह पूरी तरह से सिविल मामले होते है | लेकिन आपकी रेमेडी की मांग पर निर्भर करता है की कोई मामला सिविल में जाएगा या आपराधिक संहिता में | जुडिशियल मजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास और सेकंड क्लास निचली अदालत में बैठते है | लेकिन जैसे ही यह जिला स्तर के न्यायालय में जाते है जिसे जिला न्यायालय कहते है | यदि वहा कोई सिविल प्रकृति का मामला जाता है तो वह जिला न्यायालय में जाता है और यदि कोई आपराधिक मामला जाता है तो वह सेशन कोर्ट में जाता है | कही जगह आपने जिला एवं सेशन न्यायालय लिखा देखा होगा | यह जिला न्यायालय वो है जो सिविल मामलो को सुनेगा और सेशन न्यायालय वो है जो आपराधिक मामलो को सुनेगा | तो जो जिला न्यायाधीश है वह सिविल मामलो को सुनता है और सेशन जज आपराधिक मामलो को सुनता है | जैसे ही हम ऊपर वाली कोर्ट में जाते है तो दोनों की जज हो जाते है | इसका मतलब यह है की वो जो कुछ भी करेंगे वह न्याय होगा | निचले कोर्ट में जज और मजिस्ट्रेट है और ऊपर वाले कोर्ट में दोनों ही जज है | लेकिन जैसे ही आप हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जाते है तो उनका होना ही न्याय हो जाता है | इसलिए जो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज है उन्हें न्यायमूर्ति कहा जाता है | क्योकि उनका होना ही न्याय है | वही न्याय के प्रतिरूप है | तो इस तरह से हम जज,मजिस्ट्रेट, न्यायाधीश और न्यायमूर्ति शब्दों के बीच अंतर को समझ सकते है |

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2 thoughts on “भारतीय दंड संहिता के अनुसार न्यायाधीश (judge) कौन होता है |”

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