कई बार हमने cause of action या वाद कारण के बारे में सुना है | आज हम इस ब्लॉग के माध्यम से यह जानने का प्रयास करेंगे की cause of action या वाद कारण क्या होता है | कानून के अंतर्गत किसी भी मामले में चाहे वह मामला सिविल हो या आपराधिक cause of action या वाद कारण का बहुत महत्व होता है | वाद कारण को cause of action या कई जगहों पर इसे वाद हेतुक भी कहा जाता है | जैसा की इसके नाम से ही पता चलता है की वाद कारण जिसमे कारण का मतलब होता वह कारण जिसकी वजह से न्यायालय में कोई वाद या परिवाद लाया जाता है या वह कारण जिसकी वजह से कोई व्यक्ति न्यायालय में आया है | किसी भी वाद पत्र या परिवाद में cause of action या वाद कारण का उल्लेख करना आवश्यक होता है | तो cause of action या वाद कारण होता क्या है | जैसा की इसके नाम से ही स्पष्ट है वाद कारण यानी की वाद लाने के पीछे क्या कारण था को ही cause of action या वाद कारण कहते है |

cause of action( वाद कारण) का अर्थ –

कानून किसी भी व्यक्ति को अनेक अधिकार देता है | जैसे की समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार विभिन्न प्रकार के अधिकार दिए है और यदि इन अधिकारों का उल्लघंन होता है | यदि किसी व्यक्ति द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति के अधिकारों का उल्लघंन किया जाता है | तो कानून में किसी व्यक्ति के अधिकारों के उल्लघंन पर उपचार भी दिए गए है और वह उपचार देने का स्थान है न्यायालय तो यदि आप न्यायालय में जाएगे और न्यायालय को बतायगे की आपके विधिक अधिकार का उल्लघंन हुआ है और आपको क्षति पहुंची है | तो ऐसी क्षति या हानि कब,कैसे या किसके द्वारा पहुँचायी गयी इसे ही cause of action या वाद कारण कहा जाता है |तो यह कहा जा सकता है की ऐसे तथ्य जो यह बताते है की कैसे आपके अधिकारों का हनन हुआ है तो ऐसे तथ्यों को ही cause of action या वाद कारण कहा जाता है |

cause of action या वाद कारण के उदाहरण –

(1) यदि एक व्यक्ति द्वारा अपने आर्थिक दायित्व के लिए एक चेक दिया जाता है और जब उस व्यक्ति द्वारा जिसको की वह चेक दिया गया है भुगतान की प्राप्ति के लिए चेक को बैंक में लगया जाता है और चेक बाउंस हो जाता है | तो जिस दिन चेक बाउंस हुआ उस दिन से cause of action या वाद कारण उत्पन्न हो जाता है और वह व्यक्ति जिस भुगतान के लिए चेक दिया गया था | धारा 138 एन.आई एक्ट में चेक की राशि की प्राप्ति के लिए न्यायालय में परिवाद ला सकता है |
(2) एक व्यक्ति किसी व्यक्ति से कुछ पैसे उधार लेता है और कहता की वह एक माह के अंदर पैसे लौटा देगा और जब एक माह बाद वह व्यक्ति अपने पैसे मांगने जाता है |तो  वह व्यक्ति पैसे देने से मना कर देता | तो जिस दिनांक को उस व्यक्ति ने पैसे देने से माना किया | तो उस दिनांक से ही cause of action या वाद कारण उत्पन्न हो गया और वह व्यक्ति अपने पैसो की वापसी के लिए न्यायालय में वाद ला सकता है |

(3) एक व्यक्ति ने आपसे झगड़ा किया और झगड़ा करके आपको चोट पहुँचायी तो जिस तारिक को झगड़ा करके चोट पहुचायी गयी तो वही cause of action या वाद कारण उत्पन्न हो चूका है | आप उस व्यक्ति के विरुद्ध परिवाद दायर करके उसे सजा दिला सकते है |

वैसे cause of action या वाद कारण शब्द का सबसे ज्यादा उपयोग सिविल प्रक्रिया संहिता में किया जाता है | लेकिन cause of action या वाद कारण को सिविल प्रक्रिया संहिता में कही परिभाषित नहीं किया गया है | लेकिन cause of action या वाद कारण के बारे में सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के कई सरे निर्णय है | जिनमे यही कहा गया है की बिना cause of action या वाद कारण के वाद ख़ारिज हो जाएगा | तो वाद पत्र में cause of action या वाद कारण का होना बहुत महत्वपूर्ण होता है |

निष्कर्ष- अत: हम कह सकते है की cause of action या वाद कारण का मतलब होता है वह कारण वह बिन्दु जिससे यह पता चलता है की किसी वाद पत्र को लाने का वाद कारण कब उत्पन्न हुआ,कैसे उत्पन्न हुआ और कहा उत्पन्न हुआ | इन तीनो बिंदुओं का उल्लेख वाद पत्र में किया जाना आवश्यक होता है | तभी न्यायालय द्वारा वाद पत्र को स्वीकार किया जाएगा और वाद कारण के द्वारा ही न्यायालय का क्षेत्राधिकार निर्धारित होगा | इसी वाद कारण से वाद का लिमिटेशन निर्धारित होता है |

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