भूमिका –अग्रिम जमानत (anticipatory bail)की संकल्पना ही इस तथ्य पर आधारित है की कोई गैर जमानती अपराध घटित होने पर किसी व्यक्ति को गिरफ़्तारी की युक्तियुक्त आशंका हो, तो वह न्यायालय में आवेदन करके उस संभावित परेशानी और लांछन से बच सके, जो गिरफ़्तारी के कारण उसे भुगतनी पड़ती | अग्रिम जमानत(anticipatory bail) के आवेदन पर विचार करते समय न्यायालय यह समाधान कर लेगा की ऐसी जमानत मंजूर की जाने पर आवेदक द्वारा उसे दी गयी आजादी का दुरूपयोग किये जाने की कोई संभावना तो नहीं है या दाण्डिक कार्यवाही से बचने के लिए वह फरार ( मफरूर ) तो नहीं हो जायेगा |

सैद्धांतिक दृष्टि से(theoritically) जब किसी व्यक्ति की जमानत स्वीकार की जाती है,तो वह न्यायालय की अभिरक्षा(custody) में माना जाता है और इसलिए उसे गिरफ़्तार करने का पुलिस का अधिकार तत्काल समाप्त हो जाता है | इसी प्रकार जब कोई व्यक्ति न्यायालय के समक्ष समर्पण(surrender) करता है,और उसे निजी बंधपत्र पर छोड़ा जाता है, तो उसी समय से उसे न्यायालय की अभिरक्षा में माना जाता है | वस्तुत: व्यक्ति को निजी बंधपत्र पर छोड़ा जाना उसके जमानत के आवेदन का अंतिम निपटारा होने तक उसे अस्थायी रूप से जमानत पर छोड़े जाने की भांति है ताकि उसे जमानत पर छोड़े का उपचार प्रभावी ढंग से उपलब्ध हो सके |

अग्रिम जमानत(anticipatory bail) कौनसी धारा में मिलती है-

दंड प्रकिया संहिता 1973 की धारा 438 में गिरफ़्तारी की आशंका करने वाले व्यक्ति की जमानत स्वीकृत करने के लिए निर्देश अथार्त अग्रिम जमानत(anticipatory bail) के बारे में प्रावधान किया गया है और कोई व्यक्ति दंड प्रकिया 1973 की धारा 438 में न्यायालय में अग्रिम जमानत(anticipatory bail) के लिए आवेदन करके अग्रिम जमानत(anticipatory bail) प्राप्त कर सकता है| 

कौनसी अदालत अग्रिम जमानत(anticipatory bail) दे सकती हैं-

दंड प्रकिया संहिता 1973 की धारा 438(1) में यही प्रावधान किया गया है की ऐसा व्यक्ति जिसे यह आशंका है की उसे किसी अजमानतीय अपराध के किये जाने के लिए पुलिस द्वारा गिरफ़्तार किया जा सकता है ऐसा व्यक्ति अग्रिम जमानत के लिए उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय के समक्ष आवेदन कर सकता है |

अग्रिम जमानत(anticipatory bail)देते समय न्यायालय किन बातो का ध्यान रखेगा –

किसी व्यक्ति को उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत(anticipatory bail) देने से पूर्व निम्नलिखित बातो पर विचार किया जायेगा :-
1. अभियोग की प्रकृति और गंभीरता ;
2. आवेदक का पूर्व का आचरण जिसमे यह तथ्य भी है की क्या उसने किसी संज्ञेय अपराध के लिए किसी न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर पहले सजा भुगती है ;
3 . न्याय से भागने की आवेदक की सम्भावना ; और
4. जहां आवेदक को इस प्रकार गिरफ़्तार करा कर क्षति पहुंचाने या अपमान करने के उदेश्य से अभियोग लगाया गया है,

या तो न्यायालय आवेदन अस्वीकार करेगा या अग्रिम जमानत(anticipatory bail) मंजूर करने के लिए अंतरिम आदेश देगा |

अग्रिम जमानत(anticipatory bail) के लिए शर्ते –

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 (2) में यह उपबंधित किया गया है की किसी व्यक्ति की अग्रिम जमानत मंजूर करते समय सेशन न्यायालय या उच्च न्यायालय, अपने आदेश में निम्नलिखित शर्ते अधिरोपित कर सकता है –
(1) यह की जमानत पर छोड़ा जाने वाला व्यक्ति आवश्कतानुसार पुलिस द्वारा पूछताछ के लिए पुलिस अधिकारी के समक्ष उपस्थित होता रहेगा;
(2) यह की वह किसी ऐसे व्यक्ति को जो उसके मामले के तथ्यों से अवगत हो, न्यायालय या पुलिस अधिकारी के समक्ष ऐसे तथ्य प्रकट न करने के लिए किसी व्यक्ति को कोई उत्प्रेरण, धमकी या कोई वचन नहीं देगा ;
(3) यह की वह न्यायालय की पूर्व अनुमति के बिना भारत नहीं छोड़ेगा ;
(4) ऐसी अन्य कोई शर्त जो धारा 437 (3) के अधीन इस प्रकार अधिरोपित की जा सकती है मानो उस धारा के अधीन जमानत मंजूर की गयी हो |

अग्रिम जमानत(anticipatory bail)कब तक वैध होती है-

न्यायालय यदि चाहे तो युक्तियुक्त आधार पर अग्रिम जमानत को एक निश्चित अवधि के लिए सिमित रख सकता है | उच्चतम न्यायालय ने सलालुद्दीन अब्दुल समद बनाम महाराष्ट्र राज्य के वाद में इस बात को विशेष रूप से रेखांकित किया की अग्रिम जमानत का आदेश एक सीमित अवधि के लिए होना चाहिए तथा ऐसी अवधि की समाप्ति के बाद अग्रिम जमानत मंजूर करने वाले न्यायालय को चाहिए की वह पूर्ण मामले को नियमित विचारण न्यायालय द्वारा निपटाये जाने के लिए छोड़ दे |

अग्रिम जमानत(anticipatory bail)के बाद क्या होता है-
ऐसा व्यक्ति जिसने दंड प्रक्रिया की धारा 438 में किसी सेशन न्यायालय या उच्च न्यायलय के समक्ष अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया है और ऐसे व्यक्ति की जमानत न्यायालय द्वारा मंजूर कर ली जाती है | तो यदि ऐसे व्यक्ति को ऐसे अपराध के लिए जिसके लिए न्यायालय द्वारा उस व्यक्ति को अग्रिम जामनत दी गयी है | पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा वारंट के बिना ऐसे व्यक्ति को गिरफ़्तार किया जाता है तो वह व्यक्ति गिरफ़्तारी के समय या जब वह ऐसे अधिकारी की अभिरक्षा में है तब किसी समय जमानत देने के लिए तैयार है तो उसे जमानत पर छोड़ दिया जायेगा ; या ऐसे अपराध का विनिश्य करने वाला मजिस्ट्रेट यह विनिश्य करता है की उस व्यक्ति के विरुद्ध प्रथम बार ही वारंट जारी किया जाना चाहिए, तो वह सेशन न्यायालय या उच्च न्यायालय के निर्देश के अनुरूप जमानतीय वारंट ही जारी करेगा |
साधारण जमानत और अग्रिम जमानत के बीच अंतर-
(1) साधरण जमानत 437 के अंतर्गत न्यायिक मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा स्वीकृत की जाती है जबकि अग्रिम जमानत धारा 438 के अंतर्गत केवल सेशन न्यायालय अथवा उच्च न्यायालय द्वारा ही स्वीकृत की जा सकती है |
(2) अग्रिम जमानत केवल सीमित अवधि के लिए ही दी जाती है ताकि अभियुक्त विचारण न्यायालय में नियमित जमानत हेतु आवेदन करके उसका लाभ ले सके | अग्रिम जमानत केवल उसी समय तक वैध मानी जानी चाहिए जब तक की अभियुक्त विचारण न्यायालय में नियमित जमानत हेतु आवेदन नहीं करता है |
(3) साधारणत: जमानतीय अपराधों के लिए जमानत पर छोड़े जाने की मांग अभियुक्त विधिक अधिकार के रूप में कर सकता है | अजमानतीय अपराध के अभियुक्त को भी धारा 437 के अंतर्गत जमानत पर छोड़ा जा सकता है परन्तु अग्रिम जमनात स्वीकार करना सेशन न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायिक विवेक पर निर्भर होने के कारण अभियुक्त इसकी मांग अधिकार के रूप में नहीं कर सकता है |
साधारण और अग्रिम जमानत में विभेद स्पष्ट करते हुए उच्चतम न्यायालय ने डी.के. गणेश बाबू बनाम पी.टी. मनोकरण के वाद में अभिकथन किया की जमानत मूलत: परिरोध से उन्मुक्ति होती है, विशेषकर पुलिस अभिरक्षा में से उन्मुक्ति। धारा 437 में जमानत का आदेश अभियुक्त की पुलिस द्वारा गिरफ़्तारी के बाद उसे पुलिस हिरासत से उन्मुक्त करने हेतु दिया जाता है जबकि धारा 438 के अंतर्गत अग्रिम जमानत का आदेश किसी व्यक्ति को गिरफ़्तार किये जाने की प्रत्याशा में जारी किया जाता है, और यह केवल उसी वक्त प्रभावी होता है जब उस व्यक्ति की गिरफ़्तारी की जाती है। अत: स्षप्ट है की धारा 438 के अंर्तगत प्रयुक्त की जाने वाली अग्रिम जमानत सबंधी न्यायालय की शक्ति को अतिविशिष्ट शक्ति कहा जा सकता है जिसका प्रयोग केवल उन अपवादात्मक प्रकरणों में ही किया जाता है जब किसी व्यक्ति को किसी अपराध में झूठा फंसाये जाने की संभावना दिखलाई देती हो और यह विश्वाश करने के लिए पर्याप्त कारण हो की ऐसे व्यक्ति की अग्रिम जमानत स्वीकार किये जाने पर वह अपनी स्वतंत्रता का दुरूपयोग नहीं करेगा।
धारा 376 के मामलो में अग्रिम जमानत – दंड प्रकिया संहिता की धारा 438 की उपधारा (4 ) के अनुसार भारतीय दंड संहिता की धारा 376 की उपधारा (3) या धारा 376 (कख) या धारा 376(घक) और धारा 376 (घख) के अधीन अपराध किये जाने के अभियोग पर किसी व्यक्ति को गिरफ़्तारी की दशा में अग्रिम जमानत उपचार उपलब्ध नहीं होगा।

निष्कर्ष – उपयुक्त विवेचन से यह स्पष्ट है की अग्रिम जमनात जारी करने सबंधी शक्ति का प्रयोग केवल अजमानतीय अपराध की दशा में ही किया जा सकता है तथा यह शक्ति केवल सेशन न्यायालय और उच्च न्यायालय को ही प्राप्त है न की इससे भिन्न किसी अन्य न्यायालय को।

गिरफ्तार व्यक्ति के अधिकार

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