सामान्य परिचय (general introduction) :-
किसी भी देश में कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए एक दंड संहिता होती हैं | जो उस देश के नागरिको के लिए उन कार्यो को निषिद्ध करती हैं जिसका उल्लेख उस संहिता में किया गया हैं और अगर कोई व्यक्ति उन कार्यो को करता है | तो उसे उस दंड संहिता में दिए गए दण्डो (punishments) के अनुसार सजा दी जाती है | ऐसी ही एक दंड संहिता भारतीय नागरिको के लिए अंग्रजो द्वारा सन्न 1860 बनाई गयी थी | जिसे भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जाना हैं | जिसमे कुछ कार्यो को अपराध के रूप में परिभाषित किया गया हैं और उन अपराधों के किये जाने पर दंड (punishment) का उपबंध किया किया है | भारतीय दंड संहिता की धारा 53 उन दंड के प्रकारो (types of punishments) के बारे में बताती हैं | जो किसी व्यक्ति को उसके द्वारा किये गए अपराध के लिए दिए जा सकते हैं | इस धारा में उन सभी दण्डो का उल्लेख किया गया हैं जो punishments in ipc के अंतर्गत दण्डित व्यक्ति को दिए जा सकते हैं | यह दंड निम्न प्रकार के हो सकते है जैसे – मृत्यु दंड, आजीवन कारावास, कारावास, जो कठिन या सादा को सकता हैं,सम्पति का संपहरण और जुर्माना |
भारतीय दंड संहिता में दण्डो के प्रकार(types of punishments in ipc) :-
punishments in ipc में किसी अपराध के लिए दण्डित व्यक्ति को अपराध की प्रकृति के अनुसार पांच प्रकार के दंड दिए जा सकते हैं जो निम्न प्रकार से है|
1. मृत्यु दंड – भारतीय दंड संहिता की धाराओं 121,132,194,195(a),302,305,307,364(a),376(a),376(e) और 396 के अन्तर्गत मृत्यु दंड दिए जाने का प्रावधान हैं |
2. आजीवन कारावास – 1955 के अधिनियम 26 द्वारा ‘आजीवन निर्वासन’ के स्थान पर भारतीय दंड संहिता में ‘आजीवन कारावास ‘ को प्रतिस्थापित किया गया था | आजीवन कारावास सदैव कठिन होता है,कभी सादा नहीं |
आजीवन कारावास का अर्थ – एक प्रश्न जो कई बार मन में उठता है यह है की आजीवन कारावास की अवधि कितनी होती है | उच्चतम न्यायालय के समक्ष भी यह प्रश्न गोपाल विनायक गोडसे बनाम राज्य में आया जिसमे यह अभिनिर्धारित किया गया की आजीवन कारावास का अर्थ दोषी व्यक्ति के जीवनपर्यन्त तक कारावास है,उससे काम नहीं | चुकी प्रत्येक व्यक्ति के जीवित रहने की अवधि अनिश्चित है,इसलिए आजीवन कारावास एक निश्चित अवधि के लिए कारावास नहीं है | करतार सिंह बनाम राज्य में उच्चतम न्यायालय ने पुने यही बात दोहराई | भगीरथ बनाम दिल्ली प्रशासन में उच्चतम न्यायालय ने कहा की आजीवन कारावास दोषी पाए गए व्यक्ति के जीवनपर्यन्त की अवधि हैं | मारु राम बनाम राज्य में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया की यह धारा भविष्यलक्षी रूप में लागु होगी |
3. कारावास – भारतीय दंड संहिता की धारा 53 में दो प्रकार के punishments का प्रावधान किया गया हैं – कठिन, अर्थात कठोर श्रम के साथ, और सादा | कठिन कारावास में कारावास की अवधि में दण्डित व्यक्ति कठोर श्रम करने के लिए बाध्य है, जब की सादा कारावास में कठोर श्रम नहीं करना होता है |
केवल मात्र कठिन कारावास –
भारतीय दंड संहिता की धाराओं 166 -क, 194, 354क(2),370(2),370(3),370(4),370(5),370 -क(1),370-क (2),376 -क,376 -घ,376 -ड और 449 के अंतर्गत अपराध केवल मात्र कठिन कारावास से दण्डनीय है | इनमे सादा कारावास से दण्डित किये जाने का कोई प्रावधान नहीं है |
केवल मात्र सादा कारावास –
भारतीय दंड संहिता की धाराओं 168,169,172,173,174,175,176,178,179,180,187,188,223,225-क,228,291,341,500,501,502,509,और 510 में केवल मात्र सादा कारावास से दण्डित किये जाने का प्रावधान है,कठिन कारावास से नहीं |
केवल आजीवन कारावास-
भारतीय दंड संहिता की धाराओं 370(6) और 370(7) में जुर्माने के साथ केवल आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया हैं |
न्यूनतम कारावास की अवधि – भारतीय दंड संहिता की धारा 510 में न्यूनतम कारावास की अवधि चौबीस घण्टे निर्धारित की गयी हैं | परन्तु कई अपवाद स्वरूप मामलो में न्यायालय के उठने तक के कारावास से भी दण्डित किया गया है जिसका अर्थ यह है की दोषी व्यक्ति न्यायालय के उठने तक न्यायालय के परिसर में ही रहेगा |
कारावास के प्रथम दिन की गणना – कारावास के दंड का आदेश पारित किए जाने का दिन कारावास की अवधि का प्रथम दिन होता है | इस प्रकार कारावास की अवधि की गणना उसी दिन से प्रारम्भ होती है |
4. सम्पति का सम्पहरण – भारतीय दंड संहिता की धाराओं 126,127,169 और 263-क के अंतर्गत कारित किये गए अपराधों के लिए विनिर्दिष्ट सम्पति के सम्पहरण का प्रावधान है | परन्तु भारतीय दंड संहिता की धाराओं 61 और 62 के अंतर्गत पूर्व में लागु की जाने वाली सम्पूर्ण सम्पति के सम्पहरण के दंड को भारतीय दंड संहिता (संशोधन) अधिनियम 1912 के द्वारा समाप्त कर दिया गया हैं | बृजलाल बनाम राज्य में राजस्थान उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया की अपराध कारित करने के आयुध का अधिहरण भारतीय दंड संहिता की धारा 53 के अंतर्गत सम्पहरण नहीं है |
5. जुर्माना – भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के अंतर्गत कारावास, या जुर्माना, या दोनों साथ -साथ, दंड के प्रावधान दिए गए है और न्यायालयो को यह अधिकार है की उनमे से जो भी दंड वह उचित समझते है उसका आदेश दे सकते है | कोनसे मामले में कोनसा दंड दिया जाये यह निर्णय करने का अधिकार न्यायालय का है | भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत केवल मात्र जुर्माने का दंड केवल निम्नलिखित धाराओं में ही दिया जा सकता —
असीमित जुर्माना – भारतीय दंड संहिता की धाराओं 155,156 और 171-छ के अधीन असीमित जुर्माना का प्रावधान किया गया है |
1000 रूपए तक का जुर्माना – भारतीय दंड संहिता की धाराओं 154 और 294-क के अंतर्गत 1000 रूपए तक के जुर्माने की सीमा है |
500 रुपये तक जुर्माना – भारतीय दंड संहिता की धाराओं 137,171-ज,171-झ और 278 के अंतर्गत अधिकतम 500 रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है |
200 रुपये तक का जुर्माना – भारतीय दंड संहिता की धाराओं 263-क,283 और 290 के अंतर्गत के अधिकतम 200 रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है |